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क्या आप जानते हैं, गुरु पूर्णिमा क्यों मनाई जाती है? नहीं जानते तो पढ़िए

नई दिल्ली/आर्ची तिवारी। भारत देश में गुरु शिष्य की महान गाथाएं सदियों से चली आ रही हैं। हमेशा गुरु को सर्वोच्च पद पर बैठाया गया है और और शिष्य उनकी सेवा को ही अपना धर्म समझते हैं। यह सभी संस्कार भारत की अदि्वतीय संस्कृति के स्तंभ हैं। हमारा मानना है कि ज्ञान से बड़ा दान और कुछ नहीं होता, और गुरु हमेशा ज्ञान का दान ही करते हैं तो स्वाभाविक गुरु हर प्रकार से श्रेष्ठ हुए।

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संत कबीर दास जी ने भी अपने दोहों में गुरु की महिमा का गुणगान किया है। कबीर दास जी कहते हैं कि “गुरु गोविंद दोउ खड़े काके लागूं पाय, बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताए।” ऐसे बहुत से महान लोगों ने गुरु को सर्वश्रेष्ठ बताया है। हर साल भारत में गुरु पूर्णिमा को बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। पर क्या आप जानते हैं कि गुरू पूर्णिमा क्यों मनाया जाता है? आईए आज हम जानते हैं कि गुरु पूर्णिमा किस वजह से मनाया जाता है।

गुरु पूर्णिमा मनाने का कारण

ऐसी मान्यता है कि सर्वज्ञाता “महर्षि वेदव्यास जी” का आषाढ़ी पूर्णिमा नक्षत्र में जन्म हुआ था। उन्होंने महाभारत, ब्रह्मसूत्र, श्रीमद्भागवत और अट्ठारह पुराणों की रचना की थी। श्रीमद्भागवत की कथानुसार हर युग में नये वेदव्यास का जन्म होता है।

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यानि सतयुग में अलग वेदव्यास, त्रेतायुग में अलग, और द्वापरयुग में अलग वेदव्यास हुए थे। वेदव्यास जी के बारे में यह बात भी प्रचलित है कि चारों वेदों (ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद) का विभाजन इनके द्वारा ही होता है इसी कारण से वेद व्यास नाम पड़ता है। पुराणों के गहन अध्ययन के बाद यह बात सामने आती हैं कि वेद व्यास नाम की एक पदवी होती है जिसमें हर युग के अनुसार अलग-अलग रूप के ऋषियों को यह पद प्रदान किया जाता है। इन्हीं सब कारणों से यह गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है। इस दिन सभी लोग अपने अपने गुरुओं की पूजा करके उनसे आशीर्वाद लेते हैं और धन्यवाद देते हैं कि उन्होंने संसार और परमात्मा का ज्ञान कराया।

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