नई दिल्ली/ दीक्षा शर्मा। प्राचीन भारत में कई ऐसे महान व्यक्तियों का जन्म हुआ है, जिन्हें कभी भी नहीं भूलाया जा सकता. वह लोग इस दुनिया से जाते जाते अपनी छाप छोड़ गए. कहते है कि व्यक्ति का नाम उसके जन्म से नहीं,बल्कि कर्म से होता है. एक ऐसे ही महान राजनीतिज्ञ, कूटनीति, धर्मनीति व्यक्ति थे आचार्य चाणक्य. जो ‘कौटिल्य’ के नाम से भी विख्यात हैं. आचार्य चाणक्य एक ऐसी महान विभूति थे, जिन्होंने कई ग्रंथों की रचना की है. उन्होंने अपनी विद्वत्ता, बुद्धिमता और क्षमता के बल पर भारतीय इतिहास की धारा को बदल दिया. वह तक्षशिला विश्वविद्यालय के आचार्य थे. उन्होंने कई ग्रंथों की रचना की है, जिनमें ‘अर्थशास्त्र’ सबसे प्रमुख है. अर्थशास्त्र को मौर्यकालीन भारतीय समाज का दर्पण माना जाता है. इसके अलावा भी उन्होंने बहुत से ऐसे काम किए है, जिनकी बदौलत उन्हें आज भी याद किया जाता है. माना जाता है कि आचार्य चाणक्य का जन्म ईसा पूर्व 375 में एक घोर निर्धन परिवार में हुआ था. जबकि उनकी मृत्यु ईसा पूर्व 238 में हुई थी. लेकिन उनकी मौत आज भी एक रहस्य बनी हुई है. आचार्य चाणक्य की मृत्यु कैसे हुई यह आज तक किसी को नहीं पता. उनकी मृत्यु को लेकर इतिहास के पन्नों में एक नहीं अनेक कहानियां प्रचलित हैं, लेकिन कौन सी सच है यह कोई नहीं जानता.
पिता की मृत्यु
कहा जाता है कि चौथी शताब्दी में रचित संस्कृत के एतिहासिक नाटक मुद्राराक्षस के अनुसार चाणक्य का असली नाम विष्णुगुप्त था. माना जाता है कि यह नाम उन्होंने खुद रखा था और इसके पीछे एक कहानी प्रचलित है. कहते हैं कि मगध के राजा धनानंद द्वारा राजद्रोह के अपराध में चाणक्य के पिता चणक की हत्या करवा देने के बाद उन्होंने उनके सैनिकों से बचने के लिए अपना नाम बदलकर विष्णुगुप्त रख लिया था. हालांकि बाद में चाणक्य ने अपने पिता की हत्या का बदला भी लिया और नंद वंश के राजा धनानंद को सत्ता से बेदखल कर उसकी जगह पर चंद्रगुप्त को मगथ का सम्राट बनाया. कौटिल्य यानी चाणक्य द्वारा नंद वंश का विनाश और मौर्य वंश की स्थापना से संबंधित कथा विष्णु पुराण में आती है.
मृत्यु का रहस्य
उनकी मृत्यु के संदर्भ में कई कहानियां प्रचलित हैं, लेकिन कौन सी कहानी सच है, यह कोई नहीं जानता. पहली कहानी ये है कि एक दिन चाणक्य अपने रथ पर सवार होकर मगध से दूर किसी जंगल में चले गए और उसके बाद वो कभी लौटे ही नहीं. चाणक्य की मृत्यु के संबंध एक कहानी जो सबसे ज्यादा प्रचलित है, वो ये है कि उन्हें मगथ की ही रानी हेलेना ने जहर देकर मार दिया गया था. एक और कहानी ये है कि राजा बिंदुसार के मंत्री सुबंधु ने आचार्य को जिंदा ही जला दिया था, जिससे उनकी मौत हो गई थी. हालांकि इनमें से कौन सी कहानी सच है, यह अब तक साफ नहीं हो पाया है. इसलिए आजतक यह रहस्य ही बन कर रहे गया.