नई दिल्ली/दीक्षा शर्मा। कहा जाता है कि भगवान शिव की कृपा सिर्फ़ अपने भक्तों पर ही नहीं बल्कि अन्य जीवों और देवी देवताओं पर भी रहती है. उनका आशीर्वाद सदैव सबके साथ रहता है. उनके गले में नाग, जटा में गंगा, सिर पर चंद्रमा और हाथ में त्रिशूल-डमरू इसी बात का प्रतीक हैं. आइए जानते हैं भगवान शिव ने कैसे धारण किया था त्रिशूल, डमरू और नागराज.
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हाथ में त्रिशूल धारण करने का रहस्य
कहा जाता है कि भगवान शिव के हाथों में त्रिशूल सृष्टि के शुरुआत से ही मिला है.
पौराणिक कथाओं के अनुसार जब शिव जी का रूप प्रकट हुआ था, तो उनके साथ ही सत्व, रज और तम ये तीन गुण भी उत्पन्न हुए जो कि बाद में त्रिशूल के रूप में परिवर्तित हुआ. इसको त्रिशूल में परिवर्तित करने के पीछे यह कारण बताया जाता है कि इन गुणों को जोड़ कर रखना आवश्यक था. तभी से भगवान शिव ने इन गुणों को त्रिशूल के रूप में अपने हाथ धारण कर लिया.
सुर और संगीत के लिए बजाया था डमरू
कहते हैं कि भगवान शिव ने सृष्टि का संतुलन बनाए रखने के लिए अपने दूसरे हाथ में डमरू को धारण किया था. पौराणिक कथाओं के अनुसार कहा जाता है कि जब देवी सरस्वती ने सृष्टि में ध्वनि का संचार किया था. तब वह ध्वनि सुर और संगीत हीन थी. तब भोलेनाथ ने 14 डमरू सहित नृत्य किया.
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परम भक्त वासुकी को मिला था वरदान
नागवाज को धारण करने के पीछे पौराणिक कथाओं में बताया गया है कि नागराज वासुकी भगवान शिव के परम भक्त थे. वह सदैव ही उनकी भक्ति में लीन रहते थे और उन्हीं के साथ रहना चाहते थे. तभी सागर मंथन का कार्य शुरू हुआ तब रस्सी का काम नागराज वासुकी ने किया. उनकी भक्ति को देखकर भोलेनाथ अत्यंत प्रसन्न हुए. उन्होंने वासुकी को उसे अपने गले से लिपटे रहने का वरदान दिया. और तभी से वासुकी नागराज के रूप में भगवान शिव के गले में है.