नई दिल्ली/दीक्षा शर्मा। स्वामी विवेकानंद जी का नाम को आज कौन नहीं जानता. प्रधानमन्त्री से लेकर बड़े बड़े नेता, अभिनेता उनके सिद्धान्तों का पालन करते हैं. स्वामी विवेकानन्द वेदान्त के विख्यात और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु थे. कहते हैं कि स्वामी विवेकानंद जी को घूमने का बहुत शौक था इसलिए उन्होंने पैदल पूरे भारतवर्ष की यात्रा करने की ठानी. 31 मई 1893 से ही स्वामी विवेकानंद ने पूरे भारत की यात्रा शुरू कर दी थी. लेकिन क्या आप जानते हैं स्वामी विवेकानंद जी का सबसे पसंदीदा जगह कौन सी थी?
देवभूमि उत्तराखंड को हम स्वर्ग का नाम भी दे तो कुछ ग़लत नहीं होगा. उत्तराखण्ड अपनी खूबसूरती के लिए प्रसिद्ध और प्रचलित है. कहते हैं कि अगर आपको प्रकृति की गोद में सोना है और हरियाली को करीब से देखना है तो उत्तराखंड से बेहतर जगह कोई नहीं है. इसके अलावा उत्तराखंड को देवी देवताओं का निवास भी माना जाता है.
आपको बता दें कि स्वामी विवेकानंद जी को उत्तराखंड के अल्मोड़ा से बेहद लगाव था. अपने पूरे जीवन में उन्होंने तीन बार अल्मोड़ा की पैदल यात्रा की थी. शांति और सुकून के लिए उनका अल्मोड़ा आना जाना लगा रहता था. इसके अलावा उन्होंने अल्मोड़ा में कई दिनों तक प्रवास किया था और लोगों को अध्यात्म पर प्रवचन भी दिए. उन्होंने उत्तराखंड के अल्मोड़ा में कठोर तपस्या भी की थी.
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स्वामी विवेकानंद 1890 में पहली बार अल्मोड़ा पहुंचे थे. यहां स्वामी शारदानंद और स्वामी कृपानंद से उनकी मुलाकात हुई. एकांतवास की चाह में एक दिन वह घर से निकल पड़े और कसारदेवी पहाड़ी की गुफा में तपस्या में लीन हो गए.
11 मई, 1897 में विवेकानंद दूसरी बार अल्मोड़ा पहुंचे थे. उस समय उन्होंने यहां खजांची बाजार में जनसभा को संबोधित किया. कहा जाता है कि तब यहां पांच हजार लोगों की भीड़ उनके दर्शनों के लिए एकत्र हुई थी.
विवेकानन्द जी ने अपने भाषणों में अल्मोड़ा के बार में कहा था कि- “यह हमारे पूर्वजों के स्वप्न का स्थान है. यह पवित्र स्थान है जहां भारत का प्रत्येक सच्चा धर्म पिपासु व्यक्ति अपने जीवन का अंतिम काल बिताने का इच्छुक रहता है. यह वही पवित्र भूमि है जहां निवास करने की कल्पना मैं अपने बाल्यकाल से ही कर रहा हूं.”
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इसके बाद 1898 में तीसरी बार अल्मोड़ा आए थे. और इस बार उनके साथ स्वामी तुरियानंद व स्वामी निरंजनानंद के अलावा कई शिष्य भी थे. इस दौरान करीब एक माह की अवधि तक स्वामी जी अल्मोड़ा में प्रवास पर रहे. वर्तमान में यहां से स्वामी विवेकानंद के विचारों का प्रचार-प्रसार किया जाता है.