नई दिल्ली/आर्ची तिवारी। सुप्रीम कोर्ट और प्रशांत भूषण के बीच का विवाद अब उफान मारने लगा है। कोर्ट ने भूषण की सभी दलीलें खारिज कर उन्हें 24 अगस्त तक का समय दिया है। जिसमें भूषण को बिना शर्त के कोर्ट से माफी मांगने को कहा है। यह विवाद कुछ दिनों पहले का ही है, जब प्रशांत भूषण ने अपने ट्विटर हैंडल पर दो ट्वीट्स के जरिए उच्चतम न्यायालय के लिए कुछ शब्द कहें जिसको न्यायालय ने अवमानना करार देते हुए भूषण को दोषी समझा है। और इतने दिन से उसी पर इतना विवाद छिड़ा हुआ है। तो आइए जानते हैं, क्यों कोर्ट और भूषण माफी मांगने और न मांगने का खेल खेल रहे हैं?
भूषण और उच्चतम न्यायालय के बीच का विवाद
27 जून 2020 और 29 जून 2020 को वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने उच्चतम न्यायालय पर टिप्पणी करते हुए अपने आधिकारिक ट्वीटर हैंडल से 2 ट्वीट किए, पहले ट्वीट में उन्होंने भूतपूर्व 4 CJI के ऊपर राजतंत्र को विध्वंस करने की बात लिखी, और दूसरे ट्वीट में उन्होंने वर्तमान CJI को लेकर टिप्पणी कि उन्होंने कोरोना काल में भी बिना मास्क और हेलमेट के 5 लाख की बुलेट चलाने का आरोपी ठहराया.
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इस बात को लेकर उच्चतम न्यायालय ने प्रशांत भूषण के ट्वीट को अवमानना करार दिया और उन पर केस चला दिया, जिसके बाद से लगातार सुनवाई हो रही है, 20 अगस्त को उच्चतम न्यायालय ने प्रशांत भूषण से विवादित ट्वीट्स को लेकर माफी मांगने को कहा। इस पर प्रशांत भूषण ने कोर्ट से कहा कि “मैं माफी नहीं मांग सकता, इसीलिए सजा के लिए तैयार हूं। अगर मैं कोर्ट से माफी मांगता हूं, तो इससे मेरा और मेरी भावनाओं का अनादर होगा। मैंने कुछ गलत नहीं किया। मैं माफी नहीं मांगूंगा।”
इस पर कोर्ट ने भूषण को उनके बयानों और दलीलों पर पुनः विचार करने के लिए 4 दिन का समय दिया। वहीं, इस केस की अगली सुनवाई 24 अगस्त को रखी गई। तब तक के लिए प्रशांत भूषण को बिना शर्त माफी मांगने का समय दिया अगर भूषण 24 अगस्त को कोर्ट से बिना शर्त माफी मांगते हैं तो उन्हें बाइज्जत बरी कर दिया जाएगा।
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प्रशांत भूषण ने कोर्ट को दी ये दलीलें
14 अगस्त 2020 की सुनवाई में “अदालत की अवमानना” मसले पर प्रशांत भूषण ने कोर्ट को अपनी दलील में कहा कि उन्होंने Article19(1)(a) के तहत “बोलने की स्वतंत्रता” (Freedom of Speech) का इस्तेमाल किया है। साथ ही उन्होंने कहा कि उनके ट्वीट में किसी भी प्रकार की “अदालत की अवमानना” नहीं होती है। उनका ट्वीट आलोचना दर्शाता है। उनके ट्वीट में व्यक्तिगत क्षमता को लेकर वर्तमान के CJIs और भूतपूर्व CJIs की आलोचना थी। उन्होंने न्याय के पाठ्यक्रम के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं की।
इस पर उच्चतम न्यायालय ने प्रशांत भूषण के सभी दलीलों को खारिज करते हुए कहा की भूषण के ट्वीट्स में विकृत तथ्य और आपराधिक अपराध की मात्रा पाई जाती है। जिसके हिसाब से उन्हें दोषी माना गया है। फिर अगली सुनवाई 20 अगस्त को टाल दी गई।
रिटायर्ड न्यायाधीशों ने इस मामले पर अपनी राय दी
रिटायर्ड जज कोरेन जोसेफ ने कहा कि Article145(3) के मुताबिक अगर संविधान की व्याख्या के रूप में कानून पर पर्याप्त प्रश्न उठाए जाते हैं, तो इसमें कांस्टीट्यूशनल बेंच (Constitutional Bench) का होना अनिवार्य है। जिसमें 5 जजों की बेंच सुनवाई करती है। लेकिन इस मामले में सिर्फ तीन जजों की बेंच सुनवाई कर रही है जो कि संविधान के अनुसार गलत है। वहीं इस मसले पर कई रिटायर्ड जजों व सिविल सोसायटी के लोगों ने भी सुप्रीम कोर्ट को उनके फैसले पर पुन:र्विचार करने को कहा। इसी के साथ “अटॉर्नी जनरल” ने भी सुप्रीम कोर्ट से रिक्वेस्ट कर प्रशांत भूषण को सजा न देने की मांग की।
दुविधा में है उच्चतम न्यायालय
इन सभी विवादों के चलते सुप्रीम कोर्ट असमंजस की स्थिति में फंसा हुआ है। अगर सुप्रीम कोर्ट प्रशांत भूषण को सजा देता है तो इससे “बोलने की स्वतंत्रता” (Freedom of Speech) जैसे मौलिक अधिकारों का पतन होगा। वहीं सुप्रीम कोर्ट भूषण को सजा नहीं देती है, तो उसकी बहुत आलोचना हो सकती है। आपको बता दें कि इससे पहले भी कई बार अदालत की अवमानना के मामले सामने आए हैं। जिसमें बहुत प्रकार के भेदभाव देखे गए हैं। इतिहास में 1976 में इमरजेंसी के दौरान हुआ ADM जबलपुर केस में जस्टिस बेग की विवादित टिप्पणी पर कोई संज्ञान नहीं लिया गया। वहीं 2002 में अरुंधति रॉय को नर्मदा डैम प्रोजेक्ट (Narmada Dam Project) को लेकर सुप्रीम कोर्ट की आलोचना के दोष में 1 दिन के लिए जेल भेज दिया गया। इससे पहले पूर्व कानून मंत्री पी शिव शंकर की विवादित टिप्पणी पर सुप्रीम कोर्ट ने कोई ध्यान नहीं दिया, न ही कोई कार्यवाही की। ये पूर्व मामले दर्शाते हैं कि कोर्ट अभी तक अवमानना और आलोचना में बीच रेखा नहीं खींच पाई है।
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जानिए क्या है अदालत की अवमानना
1971 में बना यह कानून आज विवादों की सुर्खियों में बना हुआ है। इस कानून में अवमानना को लेकर निम्नलिखित बातें कहीं गई हैं.
-अदालत की अवमानना है:-
- कोई ऐसा बयान या टिप्पणी जो कोर्ट के अधिकारों को कम करता है या नष्ट करता है।
- कोई भी व्यक्ति कोर्ट की न्यायिक प्रक्रिया को बाधित करे या उसमें हस्तक्षेप करने की कोशिश करे।
- कोई भी न्याय में प्रशासन से किसी प्रकार की बाधा डालने की कोशिश करे।
-अदालत की अवमानना नहीं है: - किसी भी न्यायिक प्रक्रिया का सही तरीके से प्रचार कया पत्रकारिता करना।
- कोई भी न्यायिक आदेश की संवैधानिक तरीके से आलोचना करें।
- अगर व्यक्तिगत क्षमता को लेकर किसी भी न्यायधीश के बारे में कहना।