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आज जहां भारत देश कोरोना से अदृश्य युद्ध करता दिख रहा है वही भारत देश की शिक्षा जगत में आमूलचूल परिवर्तन आया है। यह परिवर्तन ग्रामीण आंचल में रहने वाले छात्रों के लिए मुश्किल की घड़ी बनता ही जा रहा है जहां एक तरफ ऑनलाइन प्रणाली में तेज इंटरनेट की कमी है तो वहीं छात्र इतना गरीब है कि वह इंटरनेट का रिचार्ज भी नहीं करा सकता है। शहरी क्षेत्र के कुछ जगह तो इंटरनेट की स्पीड की बहुत ज्यादा कमी है। यदि हमारे भारत देश के ऑनलाइन शिक्षा प्रणाली पहले से ही मजबूत होती तो शायद इस विकट परिस्थिति में भी विद्यार्थी घर बैठकर पढ़ाई कर पाता जो उनके लिए संजीवनी बूटी से कम ना होती. आज अमेरिका ने अपने सभी विश्वविद्यालयों व स्कूलों को 2021 तक के लिए बंद कर दिया है किंतु छात्र का नुकसान ना हो उसको ध्यान में रखते हुए उनके लिए ऑनलाइन कक्षाएं संचालित की जा रही हैं किंतु ऐसा परिवेश भारत देश में सम्भव नहीं जहां 6G की परिकल्पना करना भी समझ से परे हैं.
सरकार ऑनलाइन प्रणाली के लिए अपनी सभी तैयारियों के लिए ढ़िढोरा पिटती रहे किंतु सच्चाई यही है जहां ऑनलाइन प्रणाली के लिए शिक्षा जगत में शिक्षक तैयार नहीं हो सकते है तो विद्यार्थी कैसे तैयार होंगे? मुझे लगता है कि भारत देश में वर्तमान समय में कोरोना महामारी के कारण जहां एक तरफ बेरोजगारी बढ़ने की आशंका चरम पर है वहीं दूसरी तरफ गरीब विद्यार्थियों के माता-पिता पर इंटरनेट के रिचार्ज का अतिरिक्त बोझ भी नहीं डाला जा सकता है. रही बात कि छात्रों की पढ़ाई का नुकसान ना हो तो उत्तर प्रदेश सरकार के कोरोना महामारी के कारण प्रोन्नति मॉडल को अपनाया जा सकता है जो उन्होंने कक्षा 6,7,8,9 व 11 में लागू किया है. मानव संसाधन विकास मंत्रालय से मेरा निवेदन है कि वह विद्यार्थियों के हित के लिए स्नातक,परास्नातक व उच्च शिक्षा में उत्तर प्रदेश सरकार के प्रोन्नति मॉडल को अपनाकर विद्यार्थियों को प्रोन्नति कर उन्हें अगली कक्षा में हस्तांतरित कर सकती है. इस विकट परिस्थिति में यदि मानव संसाधन विकास मंत्रालय इस तरह की रूपरेखा तैयार करता है तो निश्चित ही वह विद्यार्थियों का भविष्य अंधकार से बचा सकें.
(यह लेखक के निजी विचार हैं)
मयंक शर्मा
एमएड छात्र
रुहेलखंड यूनिवर्सिटी कैम्पस,बरेली