नई दिल्ली/दीक्षा शर्मा। भारतीय संस्कृति में लोग आस्था और श्रद्धा पर विश्वास रखते हैं. हमारे देश में धर्म को लेकर कई तरह के प्रतिबंध और मान्यताएं प्रचलित हैं. हर मंदिर की अपनी अपनी गाथाएं और महत्त्व प्रसिद्ध हैं. हमारे देश में कई तरह के धर्म हैं, कोई हिंदू है तो कोई सिख तो कोई मुस्लिम धर्म को मानता है और इन धर्मों से जुड़े कई तीर्थस्थल भी हमारे देश में आपको मिल जाएंगें. आप कई बार ऐसे मंदिरों के बारे में सुना होगा जहां महिलाओं के प्रवेश पर वर्जित है. है कि इन मंदिरों में महिलाओं को सदियों से प्रवेश की अनुमति नहीं है. लेकिन क्या आपको पता है इसी तरह देश में एक ऐसा मंदिर भी है जहां पर प्रवेश करने और पूजा करने के लिए पुरुषों को महिलाओं के वस्त्र पहनने पड़ते हैं और सोलह श्रृंगार करना पड़ता है. आपको जानकर हैरानी होगी कि भरत के इस मंदिर में महिलाओं और ट्रांसजेंडर्स के प्रवेश करने पर कोई रोक नहीं है लेकिन पुरुषों को अगर इस मंदिर में पूजा-पाठ करनी है तो उन्हें महिलाओं की तरह पूरा सोलह श्रृंगार कर के मंदिर में प्रवेश करना होगा.
मंदिर जिसमें पुरुष का जाना वर्जित है
दरअसल, यह मंदिर केरल के कोल्लम जिले में स्थित है. श्री कोत्तानकुलांगरा देवी मंदिर में पुरुषों का जाने से रोक है. सदियों से चलती आ रही इस मंदिर की मान्यता है कि अगर इस मंदिर में पुरुषों को पूजा अर्चना करनी है तो वह महिलाओं के कपड़े धारण करें. इतना ही नहीं पुरुषों को महिलाओं के जैसे सोलह श्रृंगार भी करना होता है. मंदिर में हर साल चाम्याविलक्कू त्योहार मनाया जाता है. जिसमें हज़ारों की संख्या में पुरुष श्रद्धालु आते हैं. उनके तैयार होने के लिए मंदिर में अलग से मेकअप रूम बनाया गया है. इस त्योहार में शामिल होने के लिए उम्र की कोई सीमा नहीं रखी गई है.
मंदिर को लेकर मान्यताएं
कहा जाता है कि इस मंदिर कई पुरुषों और महिलाओं के अलावा ट्रांसजेंडर्स भी पूजा-अर्चना करने आते हैं. मंदिर को लेकर ऐसी मान्यताएं है कि इस मंदिर में स्थापित देवी की मूर्ति स्वयंभू है. इस राज्य का यह ऐसा एकमात्र मंदिर है जिसके गर्भगृह के ऊपर छत या कलश नहीं हैं. इस मंदिर की अपनी खास परंपराएं और मान्यताएं हैं. इसके लिए दुनियाभर में प्रसिद्ध है और आपको जानकर हैरानी होगी कि मंदिर के ऊपर कोई छत नहीं है.
प्रचलित कथाएं
ऐसा कहा जाता है की सदियों पहले कुछ चरवाहो ने महिलाओं के वस्त्र में पत्थर पर फूल चढ़ाए थे जिसके बाद उस पत्थर से दिव्य शक्ति निकलने लगी. इसके बाद इस पत्थर को मंदिर में स्थापित कर दिया गया और तभी से लेकर आज तक इसकी पूजा होती आ रही है. इसके अलावा इस मंदिर से जुड़ी एक और कथा प्रचलित है कि जिसके अनुसार कुछ लोग पत्थर पर नारियल फोड़ रहे थे और इसी दौरान पत्थर से खून निकलने लग गया और इसी के बाद से यहां देवी की पूजा होने लगी.