मोहनदास करमचंद गांधी यू तो अहिंसा के पुजारी थे, परंतु एक बार उन्होंने हिंसा और कायरता की तुलना करते हुए 1920 में अपने साप्ताहिक पत्र “यंग इंडिया” में एक प्रसिद्ध लेख लिखा, वह लिखते हैं कि “अहिंसा हमारी प्रजाति का धर्म है जिससे हिंसा पशु का धर्म है परंतु अगर केवल कायरता और हिंसा में किसी एक को चुनना हो तो मैं हिंसा को चुनने की सलाह दूंगा…. भारत कायरतापूर्वक, असहाय होकर अपने सम्मान का अपहरण होते देखता रहे, इसके बजाय में उसे अपने सम्मान की रक्षा के लिए हथियार उठाते देखना अधिक पसंद करूंगा”
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एक जगह उन्होंने अपने पूरे जीवन दर्शन की व्याख्या इस प्रकार की है. सत्य और अहिंसा ही वह अकेला धर्म है जिसका मैं दावा करना चाहता हूं, मैं किसी भी परामानविय शक्ति का दावा नहीं करता ऐसी कोई शक्ति मुझ में नहीं है.
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गांधीजी के दृष्टिकोण का एक महत्वपूर्ण पक्ष यह था कि वह विचार और कर्म में कोई अंतर नहीं रखते थे। उनका सत्य- अहिंसा- दर्शन जोशीले भाषणों और लेखों के लिए न होकर रोजमर्रा के जीवन के लिए था इसके अलावा साधारण जनता की संघर्ष की क्षमता पर गांधीजी को अटूट भरोसा था उदाहरण के लिए 1915 में जब मद्रास में उनका स्वागत किया गया तो दक्षिण अफ्रीका में अपने साथ संघर्ष करने वाले साधारण लोगों के बारे में उन्होंने कहा “आप कहते हैं कि इन महान स्त्री पुरुषों को प्रेरणा मैंने दी मगर मैं इस सम्मान को स्वीकार नहीं कर सकता उल्टी जरा से भी इनाम की आशा के बिना श्रद्धा के साथ कोई भी काम करने वाले इन सीधे-साधे लोगों ने ही मुझे प्रेरणा दी मुझे अपनी जगह पर अडिग रखा तथा जिन्होंने अपने बलिदान और महान श्रद्धा के द्वारा तथा महान ईश्वर में अपने महान विश्वास के द्वारा मुझसे वह सब कराया जो मैं कर सकता था”
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इसी तरह 1942 में जब उनसे पूछा गया कि वह साम्राज्य की शक्ति का सामना कैसे करेंगे तो उन्होंने उत्तर दिया “लाखों लाख जनता की शक्ति के द्वारा” अगर इस विषय पर मैं अपने विचार व्यक्त करूं तो मुझे स्पष्ट तौर पर यह लगता है कि महात्मा गांधी ने राष्ट्रवादी आंदोलन को जनता का आंदोलन बना दिया उन्होंने जनता के द्वारा संचालित कई आंदोलनों का नेतृत्व किया इससे यह बात स्पष्ट होती है कि उनके द्वारा जनता पर दिखाया गया यह विश्वास इससे पहले किसी भी राष्ट्रवादी नेता द्वारा नहीं दिखाया गया था जनता पर दिखाए गए. इसी विश्वास का परिणाम यह हुआ कि वह जनता के बीच एक लोकप्रिय नेता के तौर पर उभरे तथा जनता का उन पर विश्वास अकल्पनीय था या इससे पहले कभी घटित नहीं हुआ था.
(यह लेखक के निजी विचार हैं)
सचिन भट्ट
Bsc 3rd year
L S M PG Pithoragarh