Rahasya : सनातन धर्म में पत्नी को धर्मपत्नी क्यों कहा जाता है, जानिए इसके पिछे का मुख्य कारण

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नई दिल्ली/ दीक्षा शर्मा। Rahasya : हिन्दू धर्म में पत्नी को कई शब्दों से जाना जाता है, जिसमें ग्रहलक्ष्मी, जीवनसाथी, जीवनसंगिनी, पत्नी, धर्मपत्नी और अर्धांगिनी शमिल है. अगर आपको याद हो तो एक बार महाभारत में भीष्म पितामाह ने कहा है कि पत्नी को हमेशा सुखी रखना चाहिए क्योंकि उसी से वंश की वृद्धि होती है. आमतौर पर पत्नी के लिए गृहलक्ष्मी शब्द का भी इस्तेमाल होता है . कहा जाता है कि पत्नी के खुश और सुखी रहने पर घर में बरकत तो होती ही है.

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इसके अलावा सनातन संस्कृति में पत्नी को पति की अर्धांगिनी भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है पत्नी पति के शरीर का आधा अंग होती है. इसी के साथ अगर आजकल की बात की जाए तो पति पत्नी एक दूसरे को पार्टनर भी कहते हैं. इसके पीछे भी यह वजह बताई जाती है कि कानूनी तौर पर पत्नी अपने पति की आय और संपत्ति में भागीदार होती है.
लेकिन आखिरकार पत्नी को धर्मपत्नी कहने के पिछे क्या कारण है? पत्नी को धर्म पत्नी के नाम से क्यों जाना जाता है?

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धर्मपत्नी का अर्थ

जैसा की हम सब जानते हैं कि राजा महाराजा के समय में पुरुष एक से अधिक महिलाओं से शादी किया करते थे. दरअसल, जब दो राजाओं के बीच युद्ध हुआ करता था तो रानियों की बाजी लगाई जाती थी. उस समय धर्मपत्नी का सम्मान केवल उसी महिला को दिया जाता था जिसके साथ यज्ञ वेदी के सामने बैठ कर , अग्नि को साक्षी मानकर विवाह का संस्कार पूर्ण किए हो. इसलिए मनुष्य जिस महिला के साथ शादी का संस्कार निभाता है उसी को धर्मपत्नी का दर्जा दिया जाता है.

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