भगत सिंह के अनसुने किस्से

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भारत में 1928 के बाद क्रांतिकारी समाजवादी विचारों के प्रभाव में आने लगे ,1928 में चंद्रशेखर आजाद के नेतृत्व में उन्होंने अपने संगठन का नाम बदलकर हिंदुस्तान समाजवादी प्रजातंत्र संघ कर लिया जो पहले हिंदुस्तान प्रजातंत्र संघ था ,30 अक्टूबर 1928 को साइमन कमीशन विरोधी प्रदर्शन पर पुलिस के बर्बर लाठीचार्ज के कारण एक आकस्मिक परिवर्तन आया लाठीचार्ज में पंजाब के महान नेता लाला लाजपत राय शहीद हुए ,युवक इससे क्रुद्ध हुए और 17 दिसंबर 1928 को भगत सिंह, (Bhagat Singh)चंद्रशेखर आजाद (Chandra Shekhar Azad)और राजगुरु (Shivaram Rajguru) ने लाठीचार्ज का नेतृत्व करने वाले पुलिस अधीक्षक सांडर्स को गोलियों से भून दिया व 8 अप्रैल 1929 को भगत सिंह, बटुकेश्वर दत्त ने केंद्रीय धारा सभा में बम फेंका यह किसी को चोट पहुंचाने के उद्देश्य से नहीं था बल्कि ” बेहारो को सुनाना” इसका प्रमुख उद्देश्य था, यदि बटुकेश्वर दत्त व भगत सिंह चाहते तो बम फेंकने के बाद आसानी से भाग सकते थे मगर उन्होंने जानबूझकर अपने को गिरफ्तार कराया क्योंकि वह क्रांतिकारी प्रचार के लिए अदालत का एक मंच के रूप में उपयोग करना चाहते थे।

नता ने भगत सिंह सुखदेव और राजगुरु को बचाने के लिए देशव्यापी आंदोलन किए ऐसे ही 63 दिन लंबे चले आंदोलन में एक दुबले-पतले शरीर के व्यक्ति जतीनदास शहीद हुए इन सबके बावजूद 23 मार्च 1931 को इन्हें फांसी दी गई फांसी के कुछ दिन पहले ही लिखे एक पत्र में तीनों ने जेल सुपरिटेंडेंट को लिखा जल्द ही अंतिम संघर्ष की दुंदुभी बजेगी। इसका परिणाम निर्णायक होगा हमने इस संघर्ष में भाग लिया, हमें इस पर गर्व है।


अपनी दो अंतिम पत्रों में 23 वर्षीय भगत सिंह ने समाजवाद में अपनी आस्था व्यक्त की। वे लिखते हैं :”किसानों को केवल विदेशी शासन ही नहीं बल्कि जमीदारी और पूंजीपतियों के जुए से भी स्वयं को मुक्त करना होगा”। 3 मार्च 1931 को भेजे गए अपने अंतिम संदेश मैं उन्होंने घोषणा की कि भारत में संघर्ष तब तक जारी रहेगा जब तक की “मुट्ठी भर शोषक अपने स्वार्थों के लिए साधारण जनता की मेहनत का शोषण करते रहेंगे। इसमें कोई बहस नहीं है कि यह शोषक शुद्ध रूप से ब्रिटिश पूंजीपति है, ब्रिटिश और भारतीय मिलकर शोषण करते हैं या ये शुद्ध रूप से भारतीय है”।भगत सिंह ने समाजवाद की एक वैज्ञानिक परिभाषा की कि इसका अर्थ पूंजीवाद तथा वर्गीय शासन का अंत।


उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि 1930 के बहुत पहले ही उनके साथियों ने आतंकवाद का त्याग कर दिया था 2 फरवरी 1931 को लिखे गए अपने राजनीतिक वसीयत नामे में उन्होंने घोषणा की कि :देखने में मैंने एक आतंकवादी की तरह कार्य किया लेकिन मै आतंकवादी नहीं हूं मैं अपनी पूरी शक्ति से यह घोषणा करना चाहता चाहूंगा कि मैं आतंकवादी नहीं हूं, और शायद अपने क्रांतिकारी जीवन के आरंभिक दिनों को छोड़कर मैं कभी आतंकवादी नहीं था। और मुझे पूरा विश्वास है कि इन विधियों से कुछ भी हासिल नहीं कर सकते।’


भगत सिंह पूरी तरह और चेतन रूप से धर्मनिरपेक्ष भी थे। वह अक्सर अपने साथियों से कहते थे कि सांप्रदायिकता भी उतना ही बड़ा शत्रु है जितना कि उपनिवेशवाद और इसका सख्ती से मुकाबला करना होगा ।1926 में उन्होंने पंजाब में नौजवान भारत सभा की स्थापना में भाग लिया था और इसके प्रथम सचिव बने थे भगतसिंह ने सभा के जो नियम तैयार किए थे उनमें 2 नियम इस प्रकार थे ‘सांप्रदायिक विचार फैलाने वाले सांप्रदायिक संगठनों या अन्य पार्टियों से कोई संबंध नहीं रखना’, और ‘लोगों को यह समझाना कि धर्म व्यक्तिगत आस्था का विषय था इस प्रकार उनमें सामान्य सहिष्णुता की भावना जगाना तथा इसी विचार के अनुसार कार्य करना।’

भगत सिंह के इन्हीं आधुनिक विचारों के आधार पर लोग उन्हें ‘एक महान क्रांतिकारी और समाजवादी विचारों के प्रसार का प्रमुख मानते हैं’।

(यह लेखक के निजी विचार हैं)

सचिन भट्ट
Bsc 3rd year
LSMPG Pithoragarh

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