रहस्य से भरा भगवान जगन्नाथ मंदिर,जानकर आप भी रह जाएंगे हैरान

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नई दिल्ली/दीक्षा शर्मा। जगन्नाथ ओडिशा के तटवर्ती शहर पुरी में स्थित यह विश्व प्रसिद्ध मंदिर भगवान विष्णु के अवतार श्री कृष्ण को समर्पित है. यहां हर साल लाखों श्रद्धालु पूरी दुनिया से भगवान के दर्शन के लिए आते हैं. माना जाता है कि भगवान विष्णु जब चारों धामों पर बसे अपने धामों की यात्रा पर जाते हैं तो हिमालय की ऊंची चोटियों पर बने अपने धाम बद्रीनाथ में स्नान करते हैं. पश्चिम में गुजरात के द्वारिका में वस्त्र पहनते हैं. पुरी में भोजन करते हैं और दक्षिण में रामेश्वररम में विश्राम करते है. द्वापर के बाद भगवान कृष्ण पुरी में निवास करने लगे और बन गए जग के जगन्नाथ. पुरी का जगन्नाथ धाम चारों धामों में से एक है. यहां भगवान जगन्नाथ बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ विराजते हैं. हिन्दू पंचांग के अनुसार यहां हर आषाढ़ महीने में विशाल रथयात्रा का भव्य आयोजन होता है. इस रथ की रस्सियों को छूने मात्र ही पूरी दुनिया से श्रद्धालु यहां आते है.
जगन्नाथ पुरी मंदिर से जुड़ी कुछ मान्यताएं है, 800 साल से ज्यादा पुराने इस मंदिर की ऐसी कई रहस्यमय और चमत्कारी बातें हैं, जो आश्चर्यचकित कर देती हैं

हवा के विपरीत लहराता ध्वज
जगन्नाथ मंदिर का सबसे बड़ा रहस्य यह है कि मंदिर के ऊपर स्थापित लाल ध्वज सदैव हवा के विपरीत दिशा में लहराता है. वैसे आमतौर पर दिन के समय हवा समुद्र से धरती की तरफ चलती है और शाम को धरती से समुद्र की तरफ, लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि यहां यह प्रक्रिया उल्टी है. ध्वज पर शिव का चंद्र बना हुआ है. ध्वज भी इतना भव्य है कि जब ये लहराता है सब इसको देखते रह जाते है. ऐसा क्यों है ? इस रहस्य से आज तक कोई पर्दा नहीं उठा सका.

सुदर्शन चक्र
जगन्नाथ मंदिर के शिखर पर एक सुदर्शन चक्र लगा है, जिसके बारे में कहा जाता है कि उसे किसी भी दिशा से खड़े होकर देखें, पर ऐसा लगता है कि चक्र सदैव आपके सामने ही है इसी तरह एक और रहस्य ये है कि मंदिर के शिखर की छाया हमेशा अदृश्य ही रहती है. उसे जमीन पर कभी कोई नहीं देख पाता. इस चक्र को नीलचक्र भी कहते है. यह चक्र अति पावन और पवित्र माना जाता है.

समुन्द्र की ध्वनि
कहा जाता है कि मंदिर के अंदर समुद्र की लहरों की आवाज किसी को भी सुनाई नहीं देती है, जबकि समुद्र पास में ही है, लेकिन आप जैसे ही मंदिर से एक कदम बाहर निकालेंगे, वैसे ही समुद्र के लहरों की आवाज स्पष्ट सुनाई देने लगती है. वाकई यह किसी आश्चर्य से कम नहीं है. लेकिन जब आप मंदिर के बहार निकलेंगे तो आपको लाशों की गंध महसूस होगी.

गुंबद के ऊपर नहीं उड़ते पक्षी
मंदिर के ऊपर और ना ही मंदिर के आस पास आज तक कोई पक्षी उड़ता नहीं दिखा. आमतौर पर मंदिरों के ऊपर से पक्षी गुजरते ही हैं या कभी-कभी उसके शिखर पर भी बैठ जाते हैं, लेकिन जगन्नाथ मंदिर इस मामले में सबसे रहस्यमय है. सिर्फ़ यही नहीं इस मंदिर के ऊपर से कभी कोई विमान भी नहीं उड़ते नहीं देखा.

सबसे बड़ा रसोईघर
भगवान जगन्नाथ का पार्षद 500 रसोइए और 300 सहयोगियों के साथ मिल कर बनता है. लगभग 20 लाख भक्त यहां भोजन कर सकते है. दरअसल, यहां भक्तों के लिए प्रसाद पकाने के लिए सात बर्तन एक-दूसरे के ऊपर रखे जाते हैं, लेकिन हैरानी की बात ये है कि सबसे ऊपर रखे बर्तन में ही प्रसाद सबसे पहले पकता है. फिर नीचे की तरफ एक के बाद एक बर्तन में रखा प्रसाद पकता जाता है. इसके अलावा यह भी कहा जाता है कि यहां हर दिन बनने वाला प्रसाद भक्तों के बीच कभी कम नहीं पड़ता, चाहे 10-20 हजार लोग आएं या लाखों लोग, सबको प्रसाद मिलता ही है, लेकिन जैसे ही मंदिर का द्वार बंद होता है, वैसे ही प्रसाद भी खत्म हो जाता है.

रूप बदली मूर्ति
यहां श्री कृष्ण को जगन्नाथ कहते है. जगन्नाथ के साथ उनके बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ विराजते हैं. मूर्तियां नई ज़रूर बनाई जाती है लेकिन आकर और रूप वहीं रहता है.
कहते है इन मूर्तियों की पूजा नहीं होती , सिर्फ़ दर्शनार्थ रखी गई है.

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