नई दिल्ली/दीक्षा शर्मा। सनातन धर्म में भगवान शिव की अलग अलग रूप में पूजा जाता है. अक्सर आपने भगवान शिव को अनेकों रूप में देखा होगा और सभी रूपों की अपनी अपनी मान्यताएं और कहानियां हैं. उन्हीं में से एक अर्धनारीश्वर स्वरुप है. यह तो हम सब ही जानते हैं कि भगवान शिव की पूजा सदियों से चली आ रही है. लेकिन क्या आप यह जानते हैं कि आखिर भगवान शिव ने अर्धनारीश्वर स्वरुप को क्यों धारण किया?
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शिवपुराण कथा के मुताबिक भगवान शिव ने यह रूप स्वयं धारण किया था. कहा जाता है की भगवान शिव और शक्ति को एक साथ प्रसन्न करने के लिए भगवा शिव के अर्धनारीश्वर स्वरुप की आराधना की जाती है. भगवान शिव के इस अर्धनारीश्वर स्वरुप के आधे हिस्से में पुरुष रुपी शिव का वास है तो आधे हिस्से में स्त्री रुपी शिवा यानि शक्ति का वास है.
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पौराणिक कथा के अनुसार कहा जाता है कि ब्रह्मा जी को सृष्टि के निर्माण का जिम्मा सौंपा गया था, और तब तक भगवान शिव ने सिर्फ विष्णु और ब्रह्मा जी को ही अवतरित किया था. और किसी भी नारी की उत्पति नहीं हुई थी. जब ब्रह्मा जी ने सृष्टि के निर्माण का काम शुरु किया, तब उन्हें ज्ञात हुआ की उनकी ये जा सारी रचनाएं तो नष्ट हो जाएंगी. इस समस्या के समाधान के लिए ब्रह्मा जी भगवान शिव के पास पहुंचे और शिव को प्रसन्न करने के लिए ब्रह्मा जी ने कठोर तपस्या की और उनके तप से भगवान शिव प्रसन्न हुए. ब्रह्मा जी के तप से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने अर्धनारीश्वर स्वरुप में दर्शन दिया. जब उन्होंने इस स्वरुप में दर्शन दिया तब उनके शरीर के आधे भाग में साक्षात शिव नज़र आए और आधे भाग में स्त्री रुपी शिवा यानि शक्ति.
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